Friday, January 3, 2014

दिल्ली ,मीडिया और राष्ट्रीय राजनैतिक परिवेश

पिछला एक महीना राजनैतिक सरगर्मियों से भरपूर रहा । चार राज्यों में चुनाव हुए। तीन में बीजेपी भारी बहुमत से विजयी हुई, राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी (आप ) ने इतिहास रचते हुए सरकार बनायी । पहली कोशिश में IIT , U.P.S.C. और मुख्यमंत्री की कुर्सी निकलने वाले केजरीवाल साहिब है तो किस्मत के धनी । 
चुनाव से पहले जिस पार्टी को केजरीवाल जी ने घूँट पी पी कर कोसा ,आज आधिकारिक  या अनाधिकारिक रूप से उन्हीं के समर्थन से सत्ता में बैठने का मौका मिला  ।थूक के चाट ही लिया चाहे कुछ भी हो, रेफेरेंडम की मरीचिका हो या सत्ता का मोह या जनता की सेवा करने की जल्दीबाजी या इच्छा। राजनीती भी बड़ी अजीब चीज है , खुद को ईमानदार साबित करने के लिए जो बातें , आश्वासन और वादे किये गए  ,कही न कही जाने अनजाने में समझौता हो ही गया । इस राजनीती में जुबान की कोई कीमत ही नहीं हैं , जिनसे थोड़ी बहुत उम्मीद थी वह भी दगा दे गए । मुन्नवर राणा की कुछ पंक्तियाँ एक दम सटीक बैठती है -
" यह जो काँधे पर खुद्दारी का मैला सा अँगोछा है 
अगर हम भी "आप" की तरह बेच देते , तो न जाने कितनी कारें आ जाती । "

आशा है कि आप पूरी ईमानदारी से 5 साल जनता की सेवा करे, खुद को साबित करे, वादों को जमीनी अमली जमा पहनाये और उनके नतीजे आएं  क्योंकि अभी तक उन्होंने बातें ही की है ,खुदी ने खुद को ईमानदार घोषित किया हुआ है ,अब वक़्त भी है ,मौका भी और जरुरत भी । अगर ऐसा सम्भव हो पाया तो "आप " निश्चित तौर पर भारत के राजनैतिक भविष्य के स्वर्णिम युग की शुरुवात करेगी । 

आज जब "आप " नयी नयी सत्ता में आयी है ,उन्हें काम करने के लिए वक़्त  दिया जाना चाहिए, अभी से उन्हें सही गलत के तराजू में नहीं तौलना चाहिए। परन्तु कुछ दिनों से  "main stream" मीडिया ने अचानक "आप" को लाइमलाइट में लेना शुरू किया है ,थोड़ी आशंका उठती है । किसी भी राष्ट्रीय  न्यूज़ चेनल की वेबसाइट खोल लीजिये, अनुमानत 5 -10 खबरें सिर्फ आप की ही हैं । केजरीवाल साहिब की खांसी तक राष्ट्रीय खबर बन गयी और आंध्र प्रदेश में दस दिन पहले हुए भीषण हादसे में गयी 26 जानें, सौ स्पीड न्यूज़ में सिर्फ एक न्यूज़ बन न जाने कहा खो गयी । भारत में 27  अन्य राज्य हैं , कुछ दिल्ली से काफी बड़े भी है । इतने बड़े देश में राष्ट्रीय खबरों  का इतना अकाल पड़ जाये कि एक दल की हर हरकत को राष्ट्रिय स्तर पर दिखाया जाये ,सम्भव नहीं है । दुसरे राज्य तो छोड़िये तीन अन्य राज्यों में भी कैबिनेट घठन हुआ है ,यहाँ भी मंत्री नामक पद होता है जिस पर दिल्ली की ही तरह कुछ विधायक आसीन होते है । किसी ने नाम भी सुना छत्तीसगढ़ में कौन कौन मंत्री बना ?मीडिया तट्ठस्त है तो सबकी बात होनी चाहिए । परन्तु  दिल्ली में बनाये गए हर मंत्री के बारे में कितनी न्यूज़ चलायी गयी टीवी पर.स्पष्ट रूप से सामने है ।  वसुंधरा  राजे जी ने पूर्व राज्यपाल कमला जी द्वारा हड़पी गयी जमीन को दो हफ्ते के भीतर तुरंत सरकारी कब्जे में लिया ,रोबर्ट वाड्रा पर जांच आयोग बिठाया गया,मप्र में भी शिवराज सिंह जी ने शपथ लेते ही  1 रूपया प्रति किलो चावल गरीबो को देना शुरू किया , एक खबर तो बनती थी main stream मीडिया में ,आखिर यह तीनो राज्य भी भारत में ही है , चुनाव यहाँ भी हुए हैं ।गोवा मुख्यमंत्री परिकर जी हो या त्रिपुरा के माणिक सरकार जी ,सादगी के जीवन का पर्याय है । फिर केजरीवाल जी पर इतनी मेहरबानी क्यों ? शायद त्रिपुरा और गोवा मीडिया के हिसाब से भारत के अंग नहीं है ।  केजरीवाल साहिब को हुए दस्त तक राष्ट्रिय खबर बन गए, बेचारे हजारों बच्चे जो हर रोज दस्त,बिमारी या भूख से मरते है ,आज तक राष्ट्रिय खबर का हिस्सा नहीं बने । अब इन् बेचारो की गरीबी के लिए कहाँ  से स्पांसर लाएं । 

अपवाद यह है कि भारत में पेड  न्यूज़ का सिलसिला कुछ नया नहीं है । अधिकतर न्यूज़ चेनल्स किसी न किसी राजनेता से सीधे या पारिवारिक तौर पे सम्बन्ध रखते है । खबरें बनायीं और बिगाड़ी अपने हिसाब से जाती है । अब आप पर अचानक इतना प्यार उमड़ना टीवी चैंनलों का ,वह भी बिना किसी मतलब के, शायद ही मुमकिन है । 

सीधे तौर पे दिख रहा है कि राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े भी हो गए तो शायद ही कुछ करिश्मा कर पाये । नरेंद्र मोदी की लहर ने कांग्रेस का तो सूपड़ा लगभग साफ़ कर ही दिया है । फिर अब कांग्रेस और मीडिया के पास विकल्प क्या है ? वही विकल्प जो ज्यादा पुराना नहीं है- प्रजा राज्यम ,एनसीपी या आप ,कांग्रेस को कहाँ फर्क पड़ता है । बस "आप" बाकी दो से इसलिए अलग है क्योंकि यह  एक पार्टी नहीं अपितु अनगिनत ईमानदार  कार्यकर्ताओं की विचारधारा की लड़ाई है जिसका इस्तमाल कांग्रेस ने दिल्ली में तो कर लिया है, राष्ट्रिय राजनीती में शायद हो जाये । 

कांग्रेस को पता है मोदी को रोक पाना उनके बस की नहीं है । अगर केजरीवाल साहिब दिल्ली में पूर्ण बहुमत से आते तो जरूर वह 2g , कमोन्वेल्थ भ्रष्ठाचार पर खुले रूप से कार्यवाही करते या कोशिश तो करते । अब जब कांग्रेस सत्ता के अंदर है तो वह जैसे चाहे जितना चाहे इन मुद्दों को लम्बा खीच सकती है ,समर्थन  वापिस लेना तो उनका अधिकार है ही । लोकसभा चुनाव तक यदि ये मुद्दे दबे रहे तो कांग्रेस की काफी समस्या हल है । और रही बात मीडिया की तो आने वाले समय में केजरीवाल बनाम मोदी का प्रोपेगंडा खड़ा करवा के बाकी मुद्दों को दबाया जा सकता है । आप के लोकसभा मिशन के लिए कर्मठ कार्यकर्ताओं कि फ़ौज सोशल मीडिया और जमीन पर  पर दिन रात काम करेगी , बाकी मीडिया में पूरे गाजे बाजे के साथ "आप" को आने वाले 4 -5 महीने जम के दिखलाया जायेगा जैसा की शुरुवात हो चुकी है । मीडिया और सोशल मीडिया शहरी सीटों पर काफी प्रभाव डालेंगे । "आप" भी चूंकि उनका केडर हर गाँव देहात में नहीं है ,तो लोकसभा की 300 शहरी सीटों पर ध्यान केंद्रित करेगी,जहाँ पढ़े लिखे लोगो कि संख्या ज्यादा है ।  अब जमीनी तौर पर यह तो सम्भव है नहीं कि "आप" 272 का आंकड़ा छू ले , एंटी कांग्रेस वोट बटेंगे शहरों में जैसा कि दिल्ली में हुआ । और अगर बीजेपी 200 या 220 के आसपास भी पहुच के अटक गयी तो वही होगा जो दिल्ली में हुआ , बहुमत के पास पहुच कर भी बीजेपी सरकार नहीं बना पायेगी और जोड़ तोड़ के UPA3  की प्रबल सम्भावना होगी क्योंकि यह चुनाव मोदी बनाम "रेस्ट ऑफ़ आल " है । आप को पूरी कोशिश करनी चाहिए की वह कांग्रेस की इस रणनीति का हिस्सा न बने, राष्टीय राजनीती में "आप" को जरूर आना चाहिए परन्तु एक नींव तैयार कर । दिल्ली में जबर्दस्त काम करे, सरकार गिरती भी है तब भी अपने ईमान धर्म से समझौता न करे ,जब जनता साथ है तो डर काहे का । आप यदि कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बना सकती है तो क्यों न राष्ट्रिय स्तर पर बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़े । कम से कम कांग्रेस का तो सफाया हो जायेगा । बाकी रही बात आगे कि तो राजनीती में कुछ भी तट्ठस्त नहीं होता । पांच साल में नींव भी तैयार हो जायेगी और लड़ने के लिए एक पार्टी कम भी  । परन्तु जिस हिसाब से मीडिया और कांग्रेस का खेल आगे बढ़  रहा है यह नामुमकिन ही है । 
इतना तो तय है "आप" को बेशुमार मीडिया कवरेज मिलने वाला है लोकसभा चुनाव तक जिसका आगाज हो चुका है । आने वाले समय में प्रबल सम्भावना है मीडिया द्वारा केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद के समकक्ष दिखलाना । हो सकता है बीजेपी के सरकार न बनाने कि स्थिति में वह प्रधानमंत्री बन भी जाये क्योंकि थर्ड फ्रंट को भी एक ईमानदार छवि वाला नेता चाहिए, 20 -25 सीटें भी यदि "आप" की आ गयी ,तो यह समीकरण बनते देर नहीं लगेगी । वैसे  भी  थर्ड फ्रंट के आप से रिश्ते काफी मधुर है, कई  आप नेता माओवाद ,कश्मीर की आजादी और कम्युनिस्ट विचारधारा की ही उपज है । 

निश्चित तौर पर आने वाले 5 महीने भारत का भविष्य तय करेंगे । आप को तुरुप का इक्का बनने की  कोशिश करनी चाहिए न कि वह प्यादा जिसे वजीर की रक्षा में जरुरत और समय के हिसाब से शहीद किया जा सके । और जनता को बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन तमाशा ना देखते हुए अपने विवेक से काम लेना चाहिए 
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कुलदीप 

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