Tuesday, March 10, 2015

निर्भया डाक्यूमेंट्री और संवेदनहीनता

निर्भया, एक ऐसी गुमनाम शख्शियत जिसका नाम आते ही हर भारतीय अंदर तक आहत और दर्द से कराह उठता है । 16 दिसंबर 2012 और दिल्ली की उस घटना ने भारतीय समाज , प्रशासन  और हमारी संवेदनहीनता को आइना दिखाया । एक बेटी कुर्बान हुई, हम सब सड़क पर उतरे, गुस्सा फूटा ,प्रदर्शन हुए, और आज लगभग दो साल बाद कुछ पुराना कटु सत्य हम सब के सामने खड़ा है, परन्तु इस बार बात थोड़ी अलग है । बीबीसी प्रायोजित एक निर्भया सम्बंधित डाक्यूमेंट्री कुछ दिनों पहले विश्व पटल पर दिखाई गयी । पहले भी कई कार्यक्रम अलग अलग समाचार चैनलों पर दिखाए गए हैं । प्रिंट मीडिया में भी काफी कुछ छपा और हम सबने अलग अलग माध्यम से इस घिनौने कृत्य पर अपनी प्रतिक्रिया और संवेदनशीलता व्यक्त करी । इस कृत्य से अलग आज भी कई नेता , समाज का एक वर्ग स्त्री विरोधी बयान देता रहता है । यह एक सत्य है कि कुछ क्षीण मानसिकता वाले लोग बलात्कार की घटनाओं के लिए अजीब अजीब वजह बतलाते हैं, कभी कपड़ों को दोष दिया जाता है ,कभी लड़की को ,कभी किसी और चीज को।

पर क्या इसका मतलब ये है कि भारतीय समाज की यही सोच है ? हम और आप भी इसी समाज का हिस्सा हैं, वो करोड़ों लोग भी जो इस तरह के बयानों का न तो समर्थन करते हैं और न ही स्त्री विरोधी हैं, एक विशेष वर्ग /मानसिक विक्षिप्त  लोगों की सोच को समाज और देश की सोच से नहीं जोड़ा जा सकता । क्या यह बात हमें मालूम नहीं है कि इस प्रकार की सोच भी भारत के एक वर्ग की है ? अगर नहीं मालूम है तो शायद आप मंगल गृह पर रहते हैं । क्या यह सोच हमे जब तक बीबीसी वाले इक्का दुक्का उदहारण दे कर नहीं बताएँगे और पूरे विश्व में इसका ढिंढोरा नहीं पीटेंगे कि जी देख लो,भारतीय समाज की असलियत, तब तक क्या हम बगुले की माफ़िक़ मौन धारण किये सुन्न मुद्रा में खड़े रहेंगे ?इस डाक्यूमेंट्री के प्रसारण पर मिश्रित प्रतिक्रिया आई, बड़े स्टेटस और ट्वीट हुए, भारत का एक लिबरल वर्ग इस डाक्यूमेंट्री के समर्थन में खड़ा है और फिर वही प्लेन इंग्लिश - "look at this country, ashamed of being indian, govt did wrong by banning documentary, people must see the real truth of our society etc etc."

 आपकी भावनाओं की कद्र होनी चाहिए । आप आहत है, जायज़ है परन्तु इस दुःख के बीच आप यह भूल गए की आपकी ,मेरी और हम सबकी भावनाओं ,प्रतिकियों से बढ़कर देश है , देश का आत्मसम्मान है जो किसी बीबीसी जैसे चैनल की बपौती नहीं है कि वह अपनी TRP के लिए भारत की एक बेटी की विश्व भर में नुमाइश करें , दो तीन उदहारण के द्वारा पूरे भारत को गाली दें और उन आपकी भावनाओं का बड़ी ही सफाई से फायदा उठा बस अपने फायदे के लिए इस्तमाल करे । डाक्यूमेंट्री में प्रसारित वकील का बयान आज का नहीं है ,गूगल कीजिये दो साल पुराना बयान है जो उसने ANI को दिया था । अधिकतर लोगों को यह लग रहा है कि यह बयान ताजा है। क्या एक व्यक्ति की सोच पूरे भारत की है ? मुख्य अभियुक्त को अपने किये का कोई पछतावा नहीं है । उसके बयान को आधार बना कर पूरी डाक्यूमेंट्री का क्लाइमेक्स तैयार किया गया है । डाक्यूमेंट्री एक सच है पर क्या यह डाक्यूमेंट्री मुख्य अभियुक्त के साक्षात्कार के बिना नहीं बन सकती थी? भारतीय अदालत ने उसे मृत्यु दंड की सजा सुनाई है । यह सजा किसी व्यक्ति विशेष को नहीं अपितु एक सोच को है जो हमारे समाज में कोई जगह नहीं रखती, अगर यह सोच समाज में जगह रखती तो भारत की मीडिया कब का उसका इंटरव्यू ले चुकी होती पर जो भी जैसी भी है ,भारतीय मीडिया संवेदनशील है । अगर उस व्यक्ति की जगह समाज में होती तो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जाती ,अदालत का ट्रायल एक बंद कमरे में न होता ।

इस इंटरव्यू ने उसकी सोच को अमर कर दिया ,भारतीय संविधान और न्यायालय के फैसले पर करारा तमाचा मारा और हम इस डाक्यूमेंट्री का समर्थन करें? क्यों? पाकिस्तान , कुवैत ,सऊदी अरब तक के अखबार उठा के देख लीजिये ,भारत विरोधी खबरों से भरा पड़ा है कि इस गुनेहगार की सोच भारत के समाज की है आदि आदि।  वह लोग जिनके खुद घर शीशे के हैं आज हम पर उंगली उठा रहे हैं और हमारे लिबरल भारतीय डाक्यूमेंट्री का समर्थन कर रहे हैं । जिस सोच को मृत्यु दंड मिला है वह सोच हम सबकी कैसे हो सकती है । डाक्यूमेंट्री की परमिशन कांग्रेस ने दी ,बीजेपी चाहती तो राजनीतिक फायदे के लिए मौन धारण कर सकती थी , बैन लगाया, यहाँ तक की निर्भया के पिताजी इस बैन के समर्थन में उतरे है , वो बोले "हमारी बेटी के साथ जो हुआ वो लोगों के सामने है , परन्तु अगर सरकार ने इसपर रोक लगाई है तो मैं  इसका समर्थन करता हूँ ,मैं देश से बड़ा नहीं हूँ " । 

रेप x महिला के साथ y देश में हुआ हो, या A महिला के साथ B देश में ,बराबर है। आंकड़े उठा कर देख लीजिये भारत का नंबर कहीं नहीं है ।पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम गर्व करें,जी हम तो लिस्ट में काफी पीछे हैं, एक भी वाकिया होता है तो उसका पुरजोर विरोध करें और कड़े से कड़े कानून बना दोषियों को न बक्शें | पर बीबीसी को इस बात का कोई हक़ नहीं है कि वह यहाँ की बेटी की हत्या करने वाले व्यक्ति की सोच हम सब पर थोपे |

और बीबीसी को इतना ही दुःख है तो US  में हर पांचवी लड़की के साथ होता शोषण हो या UK में धर्म के आधार पर सिख लड़कियों के साथ होते शोषण पर क्यों मौन है? 6000 km दूर दर्द हुआ? UK के पर्यटकों  ने स्पेन में सबसे ज्यादा शारीरिक शोषण/बलात्कार की घटनाये पुलिस में दर्ज करायीं है, भारत ही क्यों? किस देश में आपने सुना है की एक लड़की के साथ हुए बर्ताव के लिए पूरा देश सड़क पर हो, जी हां यह भारत है और सिर्फ भारत है जहां हर एक व्यक्ति इस सोच और इन घटनाओं को रोकने के लिए लड़ना चाहता है ,नहीं तो निर्भया मेरी आपकी लगती क्या थी? यह है समाज की एक मुश्त सोच । 

लेस्ली जी ,निर्माता ,चुपचाप दिल्ली छोड़ UK निकल गयीं। बीबीसी ने प्रसारण पहले कर दिया । क्यों? मान भी लें की भारत की सरकार ने रोक लगा कर गलत किया तो भी लेस्ली जी भारत के कानून से ऊपर नहीं हैं । 2010  से ट्विटर पर हैं 25 ट्वीट किये हैं उन्होंने और सब निर्भया पर। दर्द काफी है उन्हें तभी तो 40000 रुपये अभियुक्त को दे कर  उसका  इंटरव्यू लिया( आज की ही खबर है डीएनए में )। बड़ा दर्द मालूम पड़ता है उन्हें। जिस सोच को न्यायलय ने मृत्यु दी ,लेस्ली जी उसे अमर कर, भारत के ऊपर थोप कर चलती बनी । लिबरल बनने की कोशिश में या शायद अज्ञानता में एक बड़ा वर्ग लेस्ली और बीबीसी की निंदा करने के बजाये शाबाशी दे रहा है। बस एक छोटा सा सवाल है ,इतना ही दर्द है तो पिछले दो साल में दिल पर हाथ रख कर पूछिये की निर्भया से सम्बंधित कितने स्टेटस डाले ,और कितनी ट्वीट करी, या जिस सोच पर ओह फ़क ,डिस्गस्टिंग कर रहे हैं,उससे बदलने के लिए प्रयास किया हो? 16 दिसंबर दो बार आ के चला गया । अगर वाकई दर्द है तो उठिए खड़े होईये और लड़िये समाज की गन्दगी से , परन्तु इन सब में यह मत भूलिए की जब बात देश की हो तो सब एक साथ खड़े होईये, और थोड़ी भी विदेश नीति की समझ रखते हैं तो भारतीय कानून की इज्जत करिये और जो सोच कानूनन रूप से मृत्यु के काबिल है ,उसे बीबीसी ,लेस्ली और स्वार्थी लोगों के चक्कर में अमर न होने दीजिये |

डाक्यूमेंट्री का समर्थन कीजिये परन्तु इस बात पर कड़ा स्टैंड लीजिये कि जिस व्यक्ति को समाज से दूर कालकोठरी में फांसी की सजा का इन्तजार है ,उस सोच को जो भी मंच दे ,अभिव्यक्ति दे, और भारत पर थोपे ,बर्दाश्त मत कीजिये क्युकि देश एक जमीन का टुकड़ा नहीं है हम सब 125 करोड़ भारतीयों से मिल कर बना है । निर्भया पर डाक्यूमेंट्री बननी चाहिए, इस सोच से लड़ती डाक्यूमेंट्री बननी चाहियें परन्तु किसी अभियुक्त की आवाज बुलंद और अमर कर भारत के मुह पर तमाचा मरती संस्थाओं का पुरजोर विरोध कीजिये ,आखिर भारत आपका और मेरा ही तो है । 


Friday, December 5, 2014

Selective संवेदनशीलता !

पिछले कुछ दिनों में कई घटना क्रम हुए जिन्होंने खबरें बनायीं , फेसबुक स्टेटस में जगह पायी और एक नया आक्रोश पनपाने की कोशिश की ! एक ऑस्ट्रेलियाई  खिलाड़ी की मैदान पर दुखद मृत्यु हुई, CRPF के जवान शहीद हुए और रोहतक में एक कथित छेड़छाड़ का मामला सामने आया। उस दिन मैदान पर घटी उस दुर्घटना ने एक प्रतिभाशाली खिलाडी की जान ले ली, फेसबुक ,ट्विटर पर  श्र्द्धांजलि देने वालों की बाढ़ सी आ गयी ! फिलिप एक  प्रतिभाशाली खिलाडी थे और वह इस सम्मान के अधिकारी थे । इसी आप धापी के बीच CRPF के जवान नक्सली हमले में शहीद हुए ,कुछ और जवान आतंकी हमलों में कश्मीर में शहीद हुए । 

न कोई स्टेटस आये न, कोई शोक सभा हुई ,न  इंडिया गेट पर मोमबत्ती छाप देश भक्ति वाले लोगों का ताँता लगा । क्यों? ऑस्ट्रेलिया में हुई मौत मौत है , भारत में गयी जान की कीमत कुछ नहीं? इंटरनेशनल मौत पर शोक प्रकट ज्यादा कूल होता  है , देसी नहीं ? अमेरिका में एक तूफ़ान में कुछ छत उड़ जाती हैं तो बड़ा मातम मनता  है ,विशाखापट्टनम हुदहुद में मरे लोगों के प्रति कुछ नहीं ? और फिर यही जनता देश ,समाज , महिला शसक्तीकरण, और फ्रीडम की बात करती है। महिलाओं को सुरक्षा दो ,वुमन एम्पावरमेंट करो , अरे पीर थोड़ी उतरेंगे आसमान से ये सब करने । हमें ही करना होगा मिल के । या  जिन्होंने जान दी ताकि हम सब मिल कर यह सब कर पाये या कम से कम बौद्धिक जुगाली कर पाएं फेसबुक,ट्विटर पर, कम से कम उनकी इज्जत तो बनती है।  

शोक है , माहौल गमनीन है परन्तु उन आसपास के सभी गावों में जहां से ये शहीद ताल्लुक रखते थे । झुंझुनू जिले में लगभग सभी प्रतिष्ठान बंद रहे जब शहीद का शव आया , आस पास के 100 से भी ज्यादा गाँवों के गामीण अंतिम यात्रा में शामिल हुए क्योंकि वहाँ संवेदनशीलता जिन्दा है । परन्तु एक और भारत है जहा संवेदनशीलता subjected to market risk है । किसी ने वीडियो शेयर कर दिया , लॉजिकल इंडियन ने कुछ ऐसा इमोशनल बता दिया ,महिला शशक्तिकरण पर हल्का सा कुछ बोल दिया तो सबके इमोशन्स बाहर आ जाते हैं ! रोहतक में एक मार पीट की घटना हुई । मीडिया ने लड़को की पिटाई करने वाली को झाँसी की रानी की संज्ञा भी दे दी। फसबुकिया भावनाएं भी चरम पर थी । Kuddos ,रोहतक Breaveheart आदि आदि से बिना कुछ सोचे समझे महिला शसक्तीकरण पर ज्ञान बटने लगा ।

आज हरियाणा सरकार ने पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच के आदेश दिए क्युकी घटना विरोधाभास है । मीडिया ने हवा बनायीं और  देश की पढ़ी लिखी जनता बह गयी । बस इतनी ही व्यवहारिक समझ है। CRPF के जवानो की शहादत पर किसी ने माहौल नहीं बनाया तो कोई नहीं जगा। निर्भया काण्ड पर घणी मोमबत्तियां जली ,उसके बाद आजतक किसी ने मुद्दत भी नहीं की कि भैया एक दो मोमबत्तियां उन 1000 +लड़कियों के लिए भी जलाई जाए जिनके साथ निर्भया सामान घिनौना कृत्य हुआ है दिल्ली में । क्यों, जब तक कोई इस "यो यो जनरेशन" को कोई बताएगा नहीं ,चमकाएगा नहीं तब तक रेप  को रेप नहीं माना जायेगा? दिल्ली चुनाव में बड़े पोलिटिकल पंडित सामने आये , कुछ दिन और रुक जाईये , दिल्ली में चुनाव नजदीक हैं , फिर मीडिया माहौल बनाएगा और फिर जनता बह जानी है। पर कितना भी माहौल बने दिल्ली में , बाड़मेर में मतदान प्रतिशत दिल्ली से ज्यादा ही रहेगा जहा जनता 50 डिग्री तापमान में वोट डालने गयी थी ,क्युकी जनता वह सच में संवेदनशील है ,selective नहीं । 

Friday, January 3, 2014

दिल्ली ,मीडिया और राष्ट्रीय राजनैतिक परिवेश

पिछला एक महीना राजनैतिक सरगर्मियों से भरपूर रहा । चार राज्यों में चुनाव हुए। तीन में बीजेपी भारी बहुमत से विजयी हुई, राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी (आप ) ने इतिहास रचते हुए सरकार बनायी । पहली कोशिश में IIT , U.P.S.C. और मुख्यमंत्री की कुर्सी निकलने वाले केजरीवाल साहिब है तो किस्मत के धनी । 
चुनाव से पहले जिस पार्टी को केजरीवाल जी ने घूँट पी पी कर कोसा ,आज आधिकारिक  या अनाधिकारिक रूप से उन्हीं के समर्थन से सत्ता में बैठने का मौका मिला  ।थूक के चाट ही लिया चाहे कुछ भी हो, रेफेरेंडम की मरीचिका हो या सत्ता का मोह या जनता की सेवा करने की जल्दीबाजी या इच्छा। राजनीती भी बड़ी अजीब चीज है , खुद को ईमानदार साबित करने के लिए जो बातें , आश्वासन और वादे किये गए  ,कही न कही जाने अनजाने में समझौता हो ही गया । इस राजनीती में जुबान की कोई कीमत ही नहीं हैं , जिनसे थोड़ी बहुत उम्मीद थी वह भी दगा दे गए । मुन्नवर राणा की कुछ पंक्तियाँ एक दम सटीक बैठती है -
" यह जो काँधे पर खुद्दारी का मैला सा अँगोछा है 
अगर हम भी "आप" की तरह बेच देते , तो न जाने कितनी कारें आ जाती । "

आशा है कि आप पूरी ईमानदारी से 5 साल जनता की सेवा करे, खुद को साबित करे, वादों को जमीनी अमली जमा पहनाये और उनके नतीजे आएं  क्योंकि अभी तक उन्होंने बातें ही की है ,खुदी ने खुद को ईमानदार घोषित किया हुआ है ,अब वक़्त भी है ,मौका भी और जरुरत भी । अगर ऐसा सम्भव हो पाया तो "आप " निश्चित तौर पर भारत के राजनैतिक भविष्य के स्वर्णिम युग की शुरुवात करेगी । 

आज जब "आप " नयी नयी सत्ता में आयी है ,उन्हें काम करने के लिए वक़्त  दिया जाना चाहिए, अभी से उन्हें सही गलत के तराजू में नहीं तौलना चाहिए। परन्तु कुछ दिनों से  "main stream" मीडिया ने अचानक "आप" को लाइमलाइट में लेना शुरू किया है ,थोड़ी आशंका उठती है । किसी भी राष्ट्रीय  न्यूज़ चेनल की वेबसाइट खोल लीजिये, अनुमानत 5 -10 खबरें सिर्फ आप की ही हैं । केजरीवाल साहिब की खांसी तक राष्ट्रीय खबर बन गयी और आंध्र प्रदेश में दस दिन पहले हुए भीषण हादसे में गयी 26 जानें, सौ स्पीड न्यूज़ में सिर्फ एक न्यूज़ बन न जाने कहा खो गयी । भारत में 27  अन्य राज्य हैं , कुछ दिल्ली से काफी बड़े भी है । इतने बड़े देश में राष्ट्रीय खबरों  का इतना अकाल पड़ जाये कि एक दल की हर हरकत को राष्ट्रिय स्तर पर दिखाया जाये ,सम्भव नहीं है । दुसरे राज्य तो छोड़िये तीन अन्य राज्यों में भी कैबिनेट घठन हुआ है ,यहाँ भी मंत्री नामक पद होता है जिस पर दिल्ली की ही तरह कुछ विधायक आसीन होते है । किसी ने नाम भी सुना छत्तीसगढ़ में कौन कौन मंत्री बना ?मीडिया तट्ठस्त है तो सबकी बात होनी चाहिए । परन्तु  दिल्ली में बनाये गए हर मंत्री के बारे में कितनी न्यूज़ चलायी गयी टीवी पर.स्पष्ट रूप से सामने है ।  वसुंधरा  राजे जी ने पूर्व राज्यपाल कमला जी द्वारा हड़पी गयी जमीन को दो हफ्ते के भीतर तुरंत सरकारी कब्जे में लिया ,रोबर्ट वाड्रा पर जांच आयोग बिठाया गया,मप्र में भी शिवराज सिंह जी ने शपथ लेते ही  1 रूपया प्रति किलो चावल गरीबो को देना शुरू किया , एक खबर तो बनती थी main stream मीडिया में ,आखिर यह तीनो राज्य भी भारत में ही है , चुनाव यहाँ भी हुए हैं ।गोवा मुख्यमंत्री परिकर जी हो या त्रिपुरा के माणिक सरकार जी ,सादगी के जीवन का पर्याय है । फिर केजरीवाल जी पर इतनी मेहरबानी क्यों ? शायद त्रिपुरा और गोवा मीडिया के हिसाब से भारत के अंग नहीं है ।  केजरीवाल साहिब को हुए दस्त तक राष्ट्रिय खबर बन गए, बेचारे हजारों बच्चे जो हर रोज दस्त,बिमारी या भूख से मरते है ,आज तक राष्ट्रिय खबर का हिस्सा नहीं बने । अब इन् बेचारो की गरीबी के लिए कहाँ  से स्पांसर लाएं । 

अपवाद यह है कि भारत में पेड  न्यूज़ का सिलसिला कुछ नया नहीं है । अधिकतर न्यूज़ चेनल्स किसी न किसी राजनेता से सीधे या पारिवारिक तौर पे सम्बन्ध रखते है । खबरें बनायीं और बिगाड़ी अपने हिसाब से जाती है । अब आप पर अचानक इतना प्यार उमड़ना टीवी चैंनलों का ,वह भी बिना किसी मतलब के, शायद ही मुमकिन है । 

सीधे तौर पे दिख रहा है कि राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े भी हो गए तो शायद ही कुछ करिश्मा कर पाये । नरेंद्र मोदी की लहर ने कांग्रेस का तो सूपड़ा लगभग साफ़ कर ही दिया है । फिर अब कांग्रेस और मीडिया के पास विकल्प क्या है ? वही विकल्प जो ज्यादा पुराना नहीं है- प्रजा राज्यम ,एनसीपी या आप ,कांग्रेस को कहाँ फर्क पड़ता है । बस "आप" बाकी दो से इसलिए अलग है क्योंकि यह  एक पार्टी नहीं अपितु अनगिनत ईमानदार  कार्यकर्ताओं की विचारधारा की लड़ाई है जिसका इस्तमाल कांग्रेस ने दिल्ली में तो कर लिया है, राष्ट्रिय राजनीती में शायद हो जाये । 

कांग्रेस को पता है मोदी को रोक पाना उनके बस की नहीं है । अगर केजरीवाल साहिब दिल्ली में पूर्ण बहुमत से आते तो जरूर वह 2g , कमोन्वेल्थ भ्रष्ठाचार पर खुले रूप से कार्यवाही करते या कोशिश तो करते । अब जब कांग्रेस सत्ता के अंदर है तो वह जैसे चाहे जितना चाहे इन मुद्दों को लम्बा खीच सकती है ,समर्थन  वापिस लेना तो उनका अधिकार है ही । लोकसभा चुनाव तक यदि ये मुद्दे दबे रहे तो कांग्रेस की काफी समस्या हल है । और रही बात मीडिया की तो आने वाले समय में केजरीवाल बनाम मोदी का प्रोपेगंडा खड़ा करवा के बाकी मुद्दों को दबाया जा सकता है । आप के लोकसभा मिशन के लिए कर्मठ कार्यकर्ताओं कि फ़ौज सोशल मीडिया और जमीन पर  पर दिन रात काम करेगी , बाकी मीडिया में पूरे गाजे बाजे के साथ "आप" को आने वाले 4 -5 महीने जम के दिखलाया जायेगा जैसा की शुरुवात हो चुकी है । मीडिया और सोशल मीडिया शहरी सीटों पर काफी प्रभाव डालेंगे । "आप" भी चूंकि उनका केडर हर गाँव देहात में नहीं है ,तो लोकसभा की 300 शहरी सीटों पर ध्यान केंद्रित करेगी,जहाँ पढ़े लिखे लोगो कि संख्या ज्यादा है ।  अब जमीनी तौर पर यह तो सम्भव है नहीं कि "आप" 272 का आंकड़ा छू ले , एंटी कांग्रेस वोट बटेंगे शहरों में जैसा कि दिल्ली में हुआ । और अगर बीजेपी 200 या 220 के आसपास भी पहुच के अटक गयी तो वही होगा जो दिल्ली में हुआ , बहुमत के पास पहुच कर भी बीजेपी सरकार नहीं बना पायेगी और जोड़ तोड़ के UPA3  की प्रबल सम्भावना होगी क्योंकि यह चुनाव मोदी बनाम "रेस्ट ऑफ़ आल " है । आप को पूरी कोशिश करनी चाहिए की वह कांग्रेस की इस रणनीति का हिस्सा न बने, राष्टीय राजनीती में "आप" को जरूर आना चाहिए परन्तु एक नींव तैयार कर । दिल्ली में जबर्दस्त काम करे, सरकार गिरती भी है तब भी अपने ईमान धर्म से समझौता न करे ,जब जनता साथ है तो डर काहे का । आप यदि कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बना सकती है तो क्यों न राष्ट्रिय स्तर पर बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़े । कम से कम कांग्रेस का तो सफाया हो जायेगा । बाकी रही बात आगे कि तो राजनीती में कुछ भी तट्ठस्त नहीं होता । पांच साल में नींव भी तैयार हो जायेगी और लड़ने के लिए एक पार्टी कम भी  । परन्तु जिस हिसाब से मीडिया और कांग्रेस का खेल आगे बढ़  रहा है यह नामुमकिन ही है । 
इतना तो तय है "आप" को बेशुमार मीडिया कवरेज मिलने वाला है लोकसभा चुनाव तक जिसका आगाज हो चुका है । आने वाले समय में प्रबल सम्भावना है मीडिया द्वारा केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद के समकक्ष दिखलाना । हो सकता है बीजेपी के सरकार न बनाने कि स्थिति में वह प्रधानमंत्री बन भी जाये क्योंकि थर्ड फ्रंट को भी एक ईमानदार छवि वाला नेता चाहिए, 20 -25 सीटें भी यदि "आप" की आ गयी ,तो यह समीकरण बनते देर नहीं लगेगी । वैसे  भी  थर्ड फ्रंट के आप से रिश्ते काफी मधुर है, कई  आप नेता माओवाद ,कश्मीर की आजादी और कम्युनिस्ट विचारधारा की ही उपज है । 

निश्चित तौर पर आने वाले 5 महीने भारत का भविष्य तय करेंगे । आप को तुरुप का इक्का बनने की  कोशिश करनी चाहिए न कि वह प्यादा जिसे वजीर की रक्षा में जरुरत और समय के हिसाब से शहीद किया जा सके । और जनता को बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन तमाशा ना देखते हुए अपने विवेक से काम लेना चाहिए 
-
कुलदीप 

Friday, April 5, 2013

जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत

जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत
वो मेरे देश के सिंहासन पे बैठने का हक नहीं रखता
कीचड़ से होता हुआ वो 2 किलोमीटर चल के
बस स्टॉप पे पहुँचता है
पसीने से लदफद
जेब में हाथ डालता है ..मुस्कुराता है ..5 रूपये बचा लिए|
AC की बस में 25 रूपये किराया है
15 मिनट खड़ा रहता है, दूसरी बस में 20 रूपये किराया है
देर से ऑफिस पहुँचता है ,
बॉस डांटता है .. वो जेब पे हाथ रख के मुस्क्रुरता है .. 5 रूपये बचा लिए |
दोपहर को एक रोटी कम खता है ,
पेट पे हाथ रख के मुस्कुराता है – 5 रूपये बचा लिए |
दोस्त की खुशामद करता है .. और (2.50 ) ढाई रूपये बचा लिए |
शाम की चाय के और बच गए,
17.50- साढे सत्तरहा रूपये बचाए हैं आज उसने 
आज वो वादा निभाएगा …शाम को लेके जाएगा मुन्ने की मिठाई ..
आम आदमी को इतने करीब से जो नहीं जनता,
जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत
वो मेरे देश के सिंहासन पे बैठने का हक नहीं रखता |

Thursday, February 28, 2013

90 का दूरदर्शन और हम

90 का दूरदर्शन और हम -
1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 
2."रंगोली" में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 
3."जंगल-बुक" देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 
4."चंद्रकांता" की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 
6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना 
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 
9."मूक-बधिर" समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना :)
(copied)

समय और बदलाव

माँ बनाती थी रोटी 
पहली गाय की 
आखरी कुत्ते की 
एक बामणी दादी की 
एक मेहतरानी बाई की |
.........

हरसुबह
सांड  जाता 
दरवाज़े पर,
गुड की डली के लिए |
कबूतर का चुग्गा 
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमाव,
पूनम का सीधा 
डाकौत का तेल,
काली कुतिया के ब्याने पर
तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से
जिस में विलासिता के नाम पर
एक टेबल पंखा था |
आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों  के ................................

(copied)

Friday, February 22, 2013

Bomb Blasts in India- my first reaction

क्या लिखूं ?
किस पर लिखूं ?
कैसे अपनी सवेदनाएं लिखूं?
चीखते लोगो पर लिखूं?
या बिखरी लाशों पर लिखूं?
दरिंदो की हैवानियत पर लिखूं?
या प्रशासन की नाकामी पर लिखूं?
मुआवजे में दिए कागजों के टुकडो पर लिखूं?
या बिलखती माँ के आंसुओ पर लिखूं?
कैसे अपनी वेदनाएं लिखूं..........-..???
(copied)