पिछले एक दशक में भारत ने कई परिवर्तन देखे है । कई मुद्दे आये .. राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, अन्ना आन्दोलन, रेप , टेलिकॉम घोटाला , कोयला आदि आदि । पर इन् सब मुद्दों में एक मुद्दा पीछे कही छूट गया ... सामाजिक सरोकार और बदलाव का । 2001 के शुरुआत से भारत में आईटी ने अपनी पकड़ बनायीं , बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत को सीधा निशाना बनाया .. हर तरफ MBA , इंजिनियर स्नातको की भीड़ नजर आने लगी । लोगो की आय बढ़ी और छोटे शहरों से महानगरो में होने वाले पलायन में भारी वृद्धी हुई । बदलती जीवन शैली और सोच में ये समाज इतना आगे निकल गया की उन्हें ये याद ही नहीं रहा की भारत मात्र 13 करोड़ इन्टरनेट से जुड़े भारतीयों और कुछ सूडो सेक्युलर बुद्धिजीवी मानसिकता वाले लोगो का नहीं है।
बदलाव की हवा हर तरफ बही। बड़े शहरों में मॉडर्न बनने की होड सी लग गयी। आप ABC कंपनी में काम करने वाले शर्मा जी को ले या अन्य किसी जगह काम करने वाली मिस चोपडा को .. नाम बदल गए है, महानगर अलग होगा पर जीवन और विचार लगभग सामान है । ज्यादा सैलरी वाली नौकरी,जुबान पे फर्राटेदार इंग्लिश, हाथ में ऊँगली से टक टक करने के लिए आईफोन और किसी भी मुद्दे पर कैंडल मार्च करने में सबसे आगे। बात करो तो ऐसा लगता है मानो ओबामा साहिब के रिश्तेदार हो । जुबान पे कृत्रिम मुस्कराहट के कारण कुछ साल बाद ये पता करना मुश्किल है की वो सिर्फ मुस्कराहट मात्र है या शकल ही वैसी है । मीडिया जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाया करता था वो भी ऐसे ही कुछ लोगो की जागीर बन गयी । कोई भी मुद्दा हो चाहे बॉलीवुड में फ़ैली अश्लीलता की बात हो या देर रात शराब सेवन की, अमेरिका का हवाला दे कर अपना उल्लू सीधा कर ही लेते है । कोई इनके खिलाफ बोल के तो दिखाए, बोलचाल और दलील में आप इनसे जीत नहीं सकते ।
और हां,बस बातचीत में ही आप इनसे जीत नहीं सकते क्योकि हकीकत में इन् लोगो का कोई अस्तित्व नहीं है
पहली बात तो ये की इनमे से अधिकांश तो वो लोग है जो दुसरे शहरो से आये है और यदि उसी शहर से है तो भी वोट नहीं डालते तो इनका इस देश में सामाजिक अस्तित्व तो यही ख़तम हो जाता है । ताजा तरीन रेप का मुद्दा ही ले लीजिये- आप इनसे कैंडल मार्च निकलवा लो, निंदा करवा लो , tweet करवा लो , गुस्सा करवा लो पर इन्ही के भाई बन्धुओ से जिंदगी मौत के बीच संघर्श करती आधी रात सड़क पे पड़ी लड़की को अस्पताल पहुचवाने की बात न कीजिये । दूसरी और सिस्टम के खिलाफ जम के न्यूज़ चेनल्स में बुलवा लो पर कोई इनसे ये कहे की अपनी आने वाली नस्ल को अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में अच्छे नंबर ला के पुलिस कांस्टेबल, सिपाही, या आईएस बन और छोटे कस्बो और गावो में काम करने के लिए प्रोत्साहित करो तो वो भी नहीं होगा । न तो ये लोग "लो-क्लास" जिंदगी नहीं जी सकते और ना ही उन् लोगो की जिंदगी,विचारधारा जो इनके हिसाब से " ऑर्थोडॉक्स " है, उसे उन्ही लोगो के बीच जा के बदलने की कवायद कर सकते ।छड़ी घुमा के बस आदेश कर देते है दिल्ली बम्बई के चकाचौंध गलियारो से कि समाज बदल दो, चोर पकड़ो , डिस्को-पब में हमे सुरक्षा दो,मोहन भगवत जैसे जमीनी स्तर पे कार्य करने वाले लोगो को बोलने मत दो , पर इनसे कुछ मत कहो ।जो मुद्दा इनके काम का नहीं है उसपर दूर दूर तक कोई सियार नहीं रोता है चाहे वो किसान आत्महत्या का मामला हो या भुकमरी का। फा--फु जिंदगी ही चाहिए इन्हें बस । कभी कभी सोच में पड जाता हूँ कि इन् लोगो के लिए शहीद हेमराज और सुधाकर का मस्तक कलम करवाना कहा तक जायज है ?
इस पूरे सामाजिक बदलाव में भारतीयता कही खो सी गयी है । समाज को समय के साथ बदलना चाहिए । पुराने रीति रिवाज भी बदलने चाहिए। पर बदलाव एक केमिकल रिएक्शन नहीं है की H2So4 में पानी मिलाओ और हो गया । परिवर्तन एक प्रक्रिया है । न जाने कितने नीव के पत्थरो ने अमेरिका और इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति में अपनी जिंदगी लगा दी होगी जिसके परिणाम स्वरुप आज उनके पोते पडपोते भोतिक वाद का लुत्फ़ उठा रहे है । व्यक्ति बदलता तब है जब कुछ फायदा दिखता है, भारत के अधिकांश भाग में आज भी शिक्षा, महिला उत्थान, शराब, पाकिस्तान, भ्रष्टाचार मुद्दे नहीं है, दो वक़्त की रोटी नसीब हो जाये साहिब, काफी है !
भारत के इस मॉडर्न समाज को ये नहीं भूलना चाहिए की उनके पुरखे कुछ नहीं कर के गए है और बदलाव चाहिए तो खड़े हो, गाँव गाँव, गली गली घूमे, देश की बुनयादी समस्याए जैसे भुकमरी, आतंकवाद ,भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के साथ साथ लड़े, संघर्ष करे और नीव के पत्थर बने जिस पर नए समाज का ढांचा खड़ा हो, सामान विकास हो और भारत का एक तबका जो आज भी सिर्फ मदद की आस में उम्मीद बंधे खड़ा है उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव आये, उसका कुछ भला हो| फलस्वरूप आप की आने वाली मॉडर्न नस्ल वो सब खुले आम कर पाए जिसके समर्थन में आज आप पुरजोर आवाज उठा रहे है नहीं तो फिर कही किसी राज्य में अपनों से लड़ते हुए जवान शहीद होंगे, मुवावजो को ऐलान होगा, दो चार दिन की खबर आएगी और फिर हम आमिर और सलमान की आने वाली फिल्म का इन्तजार में जुट जायेंगे और और शाम होते ही नए किसी आन्दोलन की तलाश में मोमबत्तिया ले के सडको पर " इवनिंग वाक " के लिए निकल जायेंगे ।
कुलदीप