Friday, April 5, 2013

जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत

जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत
वो मेरे देश के सिंहासन पे बैठने का हक नहीं रखता
कीचड़ से होता हुआ वो 2 किलोमीटर चल के
बस स्टॉप पे पहुँचता है
पसीने से लदफद
जेब में हाथ डालता है ..मुस्कुराता है ..5 रूपये बचा लिए|
AC की बस में 25 रूपये किराया है
15 मिनट खड़ा रहता है, दूसरी बस में 20 रूपये किराया है
देर से ऑफिस पहुँचता है ,
बॉस डांटता है .. वो जेब पे हाथ रख के मुस्क्रुरता है .. 5 रूपये बचा लिए |
दोपहर को एक रोटी कम खता है ,
पेट पे हाथ रख के मुस्कुराता है – 5 रूपये बचा लिए |
दोस्त की खुशामद करता है .. और (2.50 ) ढाई रूपये बचा लिए |
शाम की चाय के और बच गए,
17.50- साढे सत्तरहा रूपये बचाए हैं आज उसने 
आज वो वादा निभाएगा …शाम को लेके जाएगा मुन्ने की मिठाई ..
आम आदमी को इतने करीब से जो नहीं जनता,
जो नहीं जानता 5 रूपये की कीमत
वो मेरे देश के सिंहासन पे बैठने का हक नहीं रखता |

Thursday, February 28, 2013

90 का दूरदर्शन और हम

90 का दूरदर्शन और हम -
1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 
2."रंगोली" में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 
3."जंगल-बुक" देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 
4."चंद्रकांता" की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 
6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना 
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 
9."मूक-बधिर" समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना :)
(copied)

समय और बदलाव

माँ बनाती थी रोटी 
पहली गाय की 
आखरी कुत्ते की 
एक बामणी दादी की 
एक मेहतरानी बाई की |
.........

हरसुबह
सांड  जाता 
दरवाज़े पर,
गुड की डली के लिए |
कबूतर का चुग्गा 
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमाव,
पूनम का सीधा 
डाकौत का तेल,
काली कुतिया के ब्याने पर
तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से
जिस में विलासिता के नाम पर
एक टेबल पंखा था |
आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों  के ................................

(copied)

Friday, February 22, 2013

Bomb Blasts in India- my first reaction

क्या लिखूं ?
किस पर लिखूं ?
कैसे अपनी सवेदनाएं लिखूं?
चीखते लोगो पर लिखूं?
या बिखरी लाशों पर लिखूं?
दरिंदो की हैवानियत पर लिखूं?
या प्रशासन की नाकामी पर लिखूं?
मुआवजे में दिए कागजों के टुकडो पर लिखूं?
या बिलखती माँ के आंसुओ पर लिखूं?
कैसे अपनी वेदनाएं लिखूं..........-..???
(copied)

Thursday, January 10, 2013

सामाजिक स्थिति और बदलाव

पिछले एक दशक में भारत ने कई परिवर्तन देखे है । कई मुद्दे आये .. राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, अन्ना  आन्दोलन, रेप , टेलिकॉम घोटाला , कोयला आदि आदि । पर इन् सब मुद्दों में एक मुद्दा पीछे कही छूट गया ... सामाजिक सरोकार और बदलाव का । 2001 के शुरुआत से भारत में आईटी ने अपनी पकड़ बनायीं , बहुराष्ट्रीय  कंपनियों ने भारत को सीधा निशाना बनाया .. हर तरफ  MBA , इंजिनियर स्नातको की भीड़ नजर आने लगी । लोगो की आय बढ़ी और छोटे शहरों से महानगरो में होने वाले पलायन में भारी वृद्धी हुई । बदलती जीवन शैली और सोच में ये समाज इतना आगे निकल गया की उन्हें ये याद ही नहीं रहा की भारत मात्र 13 करोड़ इन्टरनेट से जुड़े भारतीयों और कुछ सूडो सेक्युलर बुद्धिजीवी मानसिकता वाले लोगो का नहीं है।

बदलाव की हवा हर तरफ बही। बड़े शहरों में  मॉडर्न बनने की होड सी लग गयी। आप ABC कंपनी में काम करने वाले  शर्मा जी को ले या अन्य किसी जगह काम करने वाली मिस चोपडा को .. नाम बदल गए है, महानगर अलग होगा पर जीवन और विचार लगभग सामान है । ज्यादा सैलरी वाली नौकरी,जुबान पे फर्राटेदार इंग्लिश, हाथ में ऊँगली  से टक  टक करने के लिए आईफोन  और किसी भी मुद्दे पर कैंडल मार्च करने में सबसे आगे। बात करो तो ऐसा  लगता है मानो ओबामा साहिब के रिश्तेदार हो । जुबान पे कृत्रिम मुस्कराहट के कारण  कुछ साल बाद ये पता करना मुश्किल है की वो सिर्फ मुस्कराहट मात्र है या शकल ही वैसी है । मीडिया जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाया करता था वो भी ऐसे ही कुछ लोगो की जागीर बन गयी । कोई भी मुद्दा हो चाहे बॉलीवुड में फ़ैली अश्लीलता की बात हो या देर रात शराब सेवन की, अमेरिका का हवाला दे कर अपना उल्लू सीधा कर ही लेते है । कोई इनके खिलाफ बोल के तो दिखाए, बोलचाल और  दलील में आप इनसे जीत नहीं सकते । 

और हां,बस बातचीत में ही आप इनसे जीत नहीं सकते क्योकि हकीकत में इन् लोगो का कोई अस्तित्व नहीं है 


पहली बात तो ये की इनमे से अधिकांश तो वो लोग है जो दुसरे शहरो से आये है और यदि उसी शहर से है तो भी वोट नहीं डालते तो इनका इस देश में सामाजिक अस्तित्व तो यही ख़तम हो जाता है । ताजा तरीन रेप का मुद्दा ही ले लीजिये- आप इनसे कैंडल मार्च निकलवा लो, निंदा करवा लो , tweet  करवा लो , गुस्सा करवा लो पर इन्ही के भाई बन्धुओ से जिंदगी मौत के बीच संघर्श करती आधी रात सड़क पे पड़ी लड़की को अस्पताल पहुचवाने की बात न कीजिये । दूसरी और सिस्टम के खिलाफ जम के न्यूज़ चेनल्स में बुलवा लो पर कोई इनसे ये कहे की अपनी आने वाली नस्ल को अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में अच्छे नंबर ला के पुलिस कांस्टेबल, सिपाही, या आईएस  बन और छोटे कस्बो और गावो में काम करने के लिए प्रोत्साहित करो तो वो भी नहीं होगा । न तो ये लोग "लो-क्लास"  जिंदगी नहीं जी सकते और ना ही उन् लोगो की जिंदगी,विचारधारा जो इनके हिसाब से " ऑर्थोडॉक्स " है, उसे  उन्ही लोगो के बीच जा के बदलने की कवायद कर सकते ।छड़ी घुमा के बस आदेश कर देते है दिल्ली बम्बई के चकाचौंध गलियारो से कि समाज बदल दो, चोर पकड़ो , डिस्को-पब में हमे सुरक्षा दो,मोहन भगवत जैसे जमीनी स्तर  पे कार्य करने वाले लोगो को बोलने मत दो , पर इनसे कुछ मत कहो ।जो मुद्दा इनके काम का नहीं है उसपर दूर दूर तक कोई सियार नहीं रोता है चाहे वो किसान आत्महत्या का मामला हो या भुकमरी का। फा--फु जिंदगी ही चाहिए इन्हें बस । कभी कभी सोच में पड जाता हूँ  कि इन् लोगो के लिए शहीद हेमराज और सुधाकर का मस्तक कलम करवाना कहा तक जायज है ?

इस  पूरे  सामाजिक  बदलाव  में  भारतीयता  कही खो सी गयी है । समाज को समय के साथ बदलना चाहिए । पुराने  रीति  रिवाज  भी  बदलने  चाहिए।  पर बदलाव  एक  केमिकल  रिएक्शन  नहीं  है  की  H2So4  में  पानी  मिलाओ  और  हो  गया । परिवर्तन एक  प्रक्रिया  है । न जाने  कितने  नीव  के पत्थरो ने  अमेरिका  और  इंग्लैंड  की  औद्योगिक  क्रांति  में अपनी जिंदगी लगा  दी  होगी  जिसके  परिणाम  स्वरुप  आज उनके पोते पडपोते  भोतिक  वाद का  लुत्फ़  उठा  रहे है ।  व्यक्ति  बदलता तब  है जब कुछ फायदा दिखता है, भारत के अधिकांश भाग में आज भी शिक्षा, महिला उत्थान, शराब, पाकिस्तान, भ्रष्टाचार  मुद्दे नहीं है, दो वक़्त  की  रोटी  नसीब  हो  जाये साहिब, काफी है ! 

भारत के इस मॉडर्न समाज को ये नहीं भूलना चाहिए की उनके पुरखे कुछ नहीं कर के गए है और बदलाव चाहिए तो खड़े हो, गाँव गाँव, गली गली घूमे, देश की बुनयादी समस्याए जैसे भुकमरी, आतंकवाद ,भ्रष्टाचार  के खिलाफ आवाज उठाने के साथ साथ लड़े, संघर्ष करे और नीव के पत्थर बने जिस पर नए समाज का ढांचा खड़ा हो, सामान विकास हो और भारत का एक तबका जो आज भी सिर्फ मदद की आस में उम्मीद बंधे खड़ा है उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव आये, उसका कुछ भला हो| फलस्वरूप आप की आने वाली मॉडर्न नस्ल वो सब खुले आम कर पाए  जिसके समर्थन में आज आप पुरजोर  आवाज उठा रहे है नहीं तो फिर कही किसी राज्य में अपनों से लड़ते हुए जवान शहीद होंगे, मुवावजो को ऐलान होगा, दो चार दिन की खबर आएगी और फिर हम आमिर और सलमान  की आने वाली फिल्म का इन्तजार में जुट जायेंगे और और शाम होते ही नए किसी आन्दोलन की तलाश में मोमबत्तिया ले के सडको पर " इवनिंग वाक " के लिए निकल जायेंगे ।

कुलदीप 

Friday, January 4, 2013

सामाजिक अनभिज्ञता और अपराध


दिल्ली में आखिर कार 2012 में 600+ बलात्कार की घटनाओ के बाद  देश जाग ही गया।बधाई ! संसद से लेकर सड़क तक ,ट्विटर से फेसबुक तक आवाज उठाना लगी इस घिनोने कृत्य के खिलाफ। कल तक आशंका है कुछ महिला संगठन और आ जायेंगे मैदान में आवाज उठाने। टीवी चेनल भी सनसनी खबरे दिखा रहे है । पर क्या इस से  सच  में समस्या का कुछ हल  होगा या फिर वही पुराना हिंदी मुहावरा चरितार्थ होगा  " थोथा चना बाजे घणा  "|

संसद में  यह मुद्दा भी उठा, कुछ महिला सांसदो ने आवाज बुलंद की , कुछ की अश्रु धरा भी बह निकली , पर कभी कभी इन् आंसुओ और मंसूबो पर शक होता है। न जाने रोज कितनी घटनाये आम तौर पर दिल्ली में होती है और अनेको सामने भी नहीं आती ,तब कहा चले जाते है सांसद  और राज्य की महिला मुख्यमत्री जिन्हें 600 रुपये में घर चलने की नसीहत देने क अलावा कुछ नहीं आता। सौ में से एक कार्यवाही हो भी जाती है तो उसमे भी सेहरा अपने सर बाँधने की कवायद शुरू हो जाती है । फिर खड़े हो उठते है महिला मोर्चा और संगठन अपनी पीठ थपथपाने । दूसरी ओर टीवी चेनल्स को एक मुद्दा मिल गया गुजरात मत गणना  से पहले। अब दो तीन दिन जम  के विरोध के स्वर उठाएंगे और अचानक न्यूज़ गायब हो जाएगी जैसे ही गुजरात मतगणना के परिणाम सामने आने लगेंगे ।शर्म की बात है इतना जघन्य अपराध सिर्फ मुद्दा बन के फिर  किन्ही प्राथमिकताओ में खो जायेगा।
अब जरा बात कर ले इस देश  के  जागरुक  पढ़े लिखे युवा की । अचानक ट्विटर फेसबुक पे इस अपराध के  खिलाफ प्रतिक्रियाओ की बाढ़ सी आ गयी है । कोई फोटो शेयर कर रहा है तो कोई अपने स्टेटस में इसका पुरजोर विरोध कर रहा है । देख के अच्छा  लगा  की युवा जागरूक है सामाजिक अपराधियों  के खिलाफ।पर इनमे से काफी वो है जिन्हें इस खबर की जानकारी भी सिर्फ फेसबुक या ट्विटर से ही मिली है । अब इन्हें स्टेटस अपडेट करने से फुर्सत मिले तो पता भी करे न की देश में क्या चल रहा है। घूमती  फिरती खबर सोशल मीडिया में आ गयी तो इतना बवंडर भी हो गया नहीं तो कितने बलात्कार  रोज होते है शायद की कोई मामला इतना तूल पकड़ता है । पते की बात तो ये है की इस खबर का हाल भी वैसा ही हो गया है जैसे कुछ दिन पहले हर कोई 12.12.2012 का स्टेटस अपडेट कर रहा था। कोई ना, दो तीन दिन की बात है फिर क्रिसमस इन्तजार कर रहा है फिर न्यू इयर , नया स्टेटस अपडेट करने की चाह फिर इस घटना पर  जल्द ही पर्दा दाल देगी । दुआ है इश्वर से की काश दो तीन दिन में कोई कद कदम उठ जाये नहीं तो फिर एक नए हादसे तक इन्तजार करना पड़ेगा न्याय के लिए ।
कुल मिला के मुद्दा अपराधिक होने के साथ साथ सामाजिक भी है । अपराधियों के खिलाफ दो तीन दिन हल्ला होता है फिर वही ढाक  के तीन पात। सामाजिक अनिभिज्ञता के माहौल में जरूरी है कि अपराधियों  को  तब तक न छोड़ा जाये जब तक की कुछ निष्कर्ष न निकले नहीं तो अपराधियों के हौसले बुलंद होते जायेंगे और ऐसे अमानवीय कृत्य  अन्ना आन्दोलन की तरह नयी चटपटी खबरों  के बीच कही इतहास बन गुम हो जायेंगे । 

कॉलेज से अमेरिकन कॉर्पोरेट तक .....!!!!


कॉलेज  से अमेरिकन  कॉर्पोरेट तक .....!!!!

इंजिनियरिंग  कॉलेज  के  किसी  विद्यार्थी  के  लिए  कॅंपस  प्लेसमेंट  से  बढ़कर  शायद  ही  कुछ  हो और कंपनी  अमेरिकन  हो तो  भाई  क्या  कहने !!! पॉकेट मनी  से  एक  आकर्षित  पॅकेज  का  परिवर्तन  आँखो  मे कब  ना  जाने  कितने  सपने  बुन  देता  है  ,पता  ही  नही  चलता|  फिर  शुरू  होता  है  एक  इंतजार चकाचौंध   भरी  कॉर्पोरेट  दुनिया  के  उन  लोगो  के  बीच  जगह  बनाने  का  , जिन्हे  कॉलेज  तक  सिर्फ़  दूर  से ही  देखा  होता  है | सूट बूट  पहेने , फ़र्राटे दार  अँग्रेज़ी  बोलते  हुए  कुछ  लीपे  पुते  चेहरे  अनायास  ही  अपनी तरफ  ध्यान  आकर्षित  कर  लेते  है |
एक  लंबे  इंतजार  के  बाद  फिर  दिन  आता  है  कॉर्पोरेट  मे  कदम  रखने  का ...!
दफ़्तर  का  पहला  दिन  , माफ़ कीजिएगा  "ऑफीस"  का  पहला  दिन , दफ़्तर  शब्द  उस  झूठी  दिखावे  वाली  दुनिया  के  लिए  थोड़ा  चीप  है | पहले  दिन  आपकी   ऐसे  खातिर  होती  है  मानो  दामाद  शादी  के  बाद  पहली बार  दुल्हन  लेने  ससुराल  आया  हो |  कंपनी  द्वारा  एक  आलीशान  होटेल  मे  रहने  के  लिए  किया  गया  इंतज़ाम  कही  ना  कही  "फील गुड"  करवा  ही  देता  है.| दफ़्तर  मे  भी  उँचे  रुतबे  वाले  लोगो  द्वारा  दी  गयी तवज्जो  “फील  गुड”  के  एहसास को एक कदम ओर आगे ले जाती है| इतनी  मनुहार और  आव  भगत का कारण तो समझ  नही  आता  परंतु  कुछ  पॅलो  के  लिए  अंदर  तक  सुकून  ज़रूर  दे  जाता है|
पर सयानी बिल्ली कब तक खैर मनाएगी,कुछ दिन बाद  "फील गुड " का एहसास बढ़ते काम के दबाव मे ना जाने कब पसीने  के  साथ  वाष्पिकृत  हो  जाता  है याद  ही  नही  रहता| वही  मॅनेजर  जो पहले  दिन आपके स्वागत मे थाली ले कर द्वार पे खड़ा था , नागिन  बन  बिना  धुन के  सिर  पर  नाचने  लगता है |
 दफ़्तर के  [10- 7] का समय कुछ दीनो मे ही  [ 10 - इन्फिनिटी) बन जाता है | उस झूठी  ओर छलावे  वाली दुनिया का सच चंद दिनो  मे आपके सामने होता है  जिसकी  चकाचौंध  के  कॉलेज  मे  हम  दीवाने  हुआ  करते थे | उन्ही लीपे  पुते  चेहरो  की  वो  कृत्रिम  मुस्कुराहट  आपको  आने  वाले  दिन के  खराब होने का एहसाह प्रातः काल ही करा देती है| परिवर्तन प्रकृति का नियम है परंतु इस प्रकार के सूनामी रूपी परिवर्तन की कल्पना शायद ही कोई कॉलेज से निकलते हुए करता है |
 जहा  एक  ओर  कॉलेज  मे  हँसने  के  लिए  किसी  कारण  की  ज़रूरत  नही  होती  थी वही  दूसरी  ओर दफ़्तर मे हँसने के लिए झूठे आयोजन किए जाते है | उदाहरण के तौर पे " फन फ्राइडे " को ही ले लीजिए , फ्राइडे को किया जाने वाला वाला  काल्पनिक आयोजन जहाँ  भद्दे नृत्य , बेसुरे गानो से आपको खुश करने का प्रयत्न  किया जाता है | कॉलेज की तो नही पर हाँ ...आपको अपने प्राथमिक विद्यालय  मे होने वाले  सांस्कृतिक कार्यक्रम के बिगड़े स्वरूप की याद ज़रूर आ जाएगी |
 कुल मिला कर अमेरिकन कॉर्पोरेट दुनिया उन ज़मीन से जुड़े भारतीयो के लिए तो नही है जिनके जीवन की संरचना झूठ ओर दिखावे पे नही टिकी हुई है | “Human Being”  से “ Human Resource “ बन ने की प्रक्रिया मे हमारे संस्कार, परिवार और रिश्ते नाते कही दूर  पीछ रह जाते है |


 इस काल्पनिक दुनिया पर टिप्पणी करते  हुए एक शायर   की कुछ पंक्तिया अक्सर मुझे याद आ जाती है -----

" कोई हाथ भी ना मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ...  ये नये मिज़ाज का शहर है , ज़रा फांसले से मिला करो !!!!!

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कुलदीप ||||