दिल्ली में आखिर कार 2012 में 600+ बलात्कार की घटनाओ के बाद देश जाग ही गया।बधाई ! संसद से लेकर सड़क तक ,ट्विटर से फेसबुक तक आवाज उठाना लगी इस घिनोने कृत्य के खिलाफ। कल तक आशंका है कुछ महिला संगठन और आ जायेंगे मैदान में आवाज उठाने। टीवी चेनल भी सनसनी खबरे दिखा रहे है । पर क्या इस से सच में समस्या का कुछ हल होगा या फिर वही पुराना हिंदी मुहावरा चरितार्थ होगा " थोथा चना बाजे घणा "|
संसद में यह मुद्दा भी उठा, कुछ महिला सांसदो ने आवाज बुलंद की , कुछ की अश्रु धरा भी बह निकली , पर कभी कभी इन् आंसुओ और मंसूबो पर शक होता है। न जाने रोज कितनी घटनाये आम तौर पर दिल्ली में होती है और अनेको सामने भी नहीं आती ,तब कहा चले जाते है सांसद और राज्य की महिला मुख्यमत्री जिन्हें 600 रुपये में घर चलने की नसीहत देने क अलावा कुछ नहीं आता। सौ में से एक कार्यवाही हो भी जाती है तो उसमे भी सेहरा अपने सर बाँधने की कवायद शुरू हो जाती है । फिर खड़े हो उठते है महिला मोर्चा और संगठन अपनी पीठ थपथपाने । दूसरी ओर टीवी चेनल्स को एक मुद्दा मिल गया गुजरात मत गणना से पहले। अब दो तीन दिन जम के विरोध के स्वर उठाएंगे और अचानक न्यूज़ गायब हो जाएगी जैसे ही गुजरात मतगणना के परिणाम सामने आने लगेंगे ।शर्म की बात है इतना जघन्य अपराध सिर्फ मुद्दा बन के फिर किन्ही प्राथमिकताओ में खो जायेगा।
अब जरा बात कर ले इस देश के जागरुक पढ़े लिखे युवा की । अचानक ट्विटर फेसबुक पे इस अपराध के खिलाफ प्रतिक्रियाओ की बाढ़ सी आ गयी है । कोई फोटो शेयर कर रहा है तो कोई अपने स्टेटस में इसका पुरजोर विरोध कर रहा है । देख के अच्छा लगा की युवा जागरूक है सामाजिक अपराधियों के खिलाफ।पर इनमे से काफी वो है जिन्हें इस खबर की जानकारी भी सिर्फ फेसबुक या ट्विटर से ही मिली है । अब इन्हें स्टेटस अपडेट करने से फुर्सत मिले तो पता भी करे न की देश में क्या चल रहा है। घूमती फिरती खबर सोशल मीडिया में आ गयी तो इतना बवंडर भी हो गया नहीं तो कितने बलात्कार रोज होते है शायद की कोई मामला इतना तूल पकड़ता है । पते की बात तो ये है की इस खबर का हाल भी वैसा ही हो गया है जैसे कुछ दिन पहले हर कोई 12.12.2012 का स्टेटस अपडेट कर रहा था। कोई ना, दो तीन दिन की बात है फिर क्रिसमस इन्तजार कर रहा है फिर न्यू इयर , नया स्टेटस अपडेट करने की चाह फिर इस घटना पर जल्द ही पर्दा दाल देगी । दुआ है इश्वर से की काश दो तीन दिन में कोई कद कदम उठ जाये नहीं तो फिर एक नए हादसे तक इन्तजार करना पड़ेगा न्याय के लिए ।
कुल मिला के मुद्दा अपराधिक होने के साथ साथ सामाजिक भी है । अपराधियों के खिलाफ दो तीन दिन हल्ला होता है फिर वही ढाक के तीन पात। सामाजिक अनिभिज्ञता के माहौल में जरूरी है कि अपराधियों को तब तक न छोड़ा जाये जब तक की कुछ निष्कर्ष न निकले नहीं तो अपराधियों के हौसले बुलंद होते जायेंगे और ऐसे अमानवीय कृत्य अन्ना आन्दोलन की तरह नयी चटपटी खबरों के बीच कही इतहास बन गुम हो जायेंगे ।
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